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अग्ने॒ शर्ध॑ मह॒ते सौभ॑गाय॒ तव॑ द्यु॒म्नान्यु॑त्त॒मानि॑ सन्तु। सं जा॑स्प॒त्यं सु॒यम॒मा कृ॑णुष्व शत्रूय॒ताम॒भि ति॑ष्ठा॒ महां॑सि ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agne śardha mahate saubhagāya tava dyumnāny uttamāni santu | saṁ jāspatyaṁ suyamam ā kṛṇuṣva śatrūyatām abhi tiṣṭhā mahāṁsi ||

पद पाठ

अग्ने॑। शर्ध॑। म॒ह॒ते। सौभ॑गाय। तव॑। द्यु॒म्नानि॑। उ॒त्ऽत॒मानि॑। स॒न्तु॒। सम्। जाः॒ऽप॒त्यम्। सु॒ऽयम॑म्। आ। कृ॒णु॒ष्व॒। श॒त्रु॒ऽय॒ताम्। अ॒भि। ति॒ष्ठ॒। महां॑सि ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:28» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:22» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शर्ध) प्रशंसित बल से युक्त (अग्ने) विद्वन् ! (तव) आपके (महते) बड़े (सौभगाय) सुन्दर ऐश्वर्य्य के लिये (उत्तमानि) श्रेष्ठ (द्युम्नानि) यश वा धन (सन्तु) हों और तुम (सुयमम्) सुन्दर सत्य आचरणों का ग्रहण जिसमें ऐसे (जास्पत्यम्) स्त्री के पतिपने को (आ, कृणुष्व) अच्छे प्रकार करिये और (शत्रूयताम्) शत्रु के सदृश आचरण करते हुओं की (महांसि) बड़ी सेनाओं के (सम्, अभि, तिष्ठा) सन्मुख स्थित हूजिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे धर्मिष्ठो ! हम लोग आपके लिये बड़े ऐश्वर्य्य की इच्छा करें और आप दोनों स्त्री और पुरुष जितेन्द्रिय, धर्म्मात्मा, बलवान् और पुरुषार्थी होकर सम्पूर्ण दुष्टों की सेना को जीतिये ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे शर्धाग्ने ! तव महते सौभगायोत्तमानि द्युम्नानि सन्तु त्वं सुयमं जास्पत्यमा कृणुष्व शत्रूयतां महांसि समभितिष्ठा ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) विद्वन् (शर्ध) प्रशंसितबलयुक्त (महते) (सौभगाय) शोभनैश्वर्य्याय (तव) (द्युम्नानि) यशांसि धनानि वा (उत्तमानि) (सन्तु) (सम्) (जास्पत्यम्) जायायाः पतित्वम् (सुयमम्) शोभनो यमः सत्याचरणनिग्रहो यस्मिँस्तम् (आ) (कृणुष्व) (शत्रूयताम्) शत्रूणामिवाचरताम् (अभि) आभिमुख्ये (तिष्ठा) (महांसि) महान्ति सैन्यानि ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे धर्मिष्ठौ ! वयं त्वदर्थं महदैश्वर्य्यमिच्छेम युवां स्त्रीपुरुषौ जितेन्द्रियौ धर्म्मात्मानौ बलिष्ठौ पुरुषार्थिनो भूत्वा सर्वां दुष्टसेनां विजयेथाम् ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे धार्मिकांनो! आम्ही तुमच्यासाठी महाऐश्वर्याची इच्छा करतो. तुम्ही दोघे स्त्री-पुरुष जितेन्द्रिय, धर्मात्मा, बलवान व पुरुषार्थी बनून संपूर्ण दुष्टांच्या सेनेला जिंका. ॥ ३ ॥